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Showing posts from 2015

आम से खास हुई आपकी सरकार

रामलीला मैदान मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हुए अरविंद केजरीवाल ने सार्वजनिक तौर पर मंच से अपने वादों व आशाओं और आशंकाएं के विषयों को प्रमुखता से जगह दी और उन्हें बिना किसी लाग लपेट के जाहिर भी कर दिया। इसमें कोई संदेह की भी बात नही ं है की जिन वादों की गाड़ी पर सवार होकर 67 सीट की रफ्तार से सत्ता में आई है, उस प्रचंडता और वादों को पूरा करने और इन वादों को पूरा करने में आने वाली अड़चनों को दूर करने की रणनीति में आम आदमी पार्टी के अन्र्तमन में डर और घबराहट होना स्वाभिवक है, और जैसे-जैसे समय निकलेगा यह घबराहट दबाव का रूप लेने लगेगा जो घटेगा नहीं बढे़गा ही। इन नये गढे विचारों और राजनीति की नई पारी में निसंदेह पार्टी विचारो से ज्यादा सरकार इनके कार्यन्वन पर ध्यान देना चाहती है। राजकाज के इसी जोश में शायद आम आदमी पार्टी द्वारा दिल्ली विधानसभा में मीडिया को प्रतिबन्धित किया है। आप के इस ऐलान से ऐसा लगता है कि आप यह कहना चाहती है कि मीडिया उन्हें किसी बात के लिए मजबूर नहीं कर सकता। लेकिन आप को यह नहीं भूलना चाहिए कि मीडिया सरकार और जनता के बीच सेतू का काम करता है,और यह वहीं सेतू है जिसने आप क

जीते तो हर हर मोदी हारे तो किरन बेदी

हाल के दिनों में भारतीय जनता पार्टी जहां-जहां चुनाव जीती, वहां उसने मोदी के चहेते और संघ-स्वीकृत नेताओं को ही कुर्सी पर बैठाया। महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा में भाजपा के मुकाबले में कोई ईमानदार छवि की भरोसेमंद पार्टी नहीं थी। साथ ही सत्ता विरोधी रुझान भी भाजपा के पक्ष में गया। लेकिन दिल्ली की राजनीति अलग है और दिल्ली विजय मे भारतीय जनता पार्टी की अनाम मुख्यमंत्री वाली चाल कामयाब नहीं हो पाती । यह स्पष्ट है कि अगर केजरीवाल और उनकी पार्टी मुकाबले में न होते तो   भाजपा अपने वरिष्ठों को दरकिनार कर किरण बेदी को शामिल कभी नहीं करती। भाजपा आलाकमान इस बात को भली भांति समझता है कि दिल्ली  में केजरीवाल और उनकी पार्टी ही उनके लिए एकमात्र चुनौती हैं। दिल्ली की राजनीति के समीकरणों के इन्हीं आंकड़ों को समझते  हुए  भारतीय जनता पार्टी के थ्ािंक टैंको ने बिना समया निकाले, अपनी 49 दिनों की सरकार में बिजली-पानी सस्ता करने वाली आम आदमी पार्टी के मजबूत प्रतिद्वंद्वी अरविंद केजरीवाल के सामने  चुनाव से  पहले शून्य राजनीतिक अनुभव वाली देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी को पार्टी में शामिल किया। इसका मतलब साफ

बहस क्यों नही होनी चहिए?

ट्वीटर पर जबसे अरविंद केजरीवाल ने किरन बेदी को  चुनावी मौसम में बहस के लिए ललकारा और बेदी ने यह कह कर पल्ल छाड़ लिया कि वह विधान सभा में बहस करेंगी तबसे केजरीवाल के ट्वीट से उठे हंगामे से जहां सोशल मीडिया पर चुनावी  चक्कलस करने वाले मजा लेने लगे हैं,वही राजनीति में  दखल रखने वालों के बीच चर्चा तेज हो गई की क्या वाकई बहस होनी चाहिए। अगर दलों के आपसी आरोपों-प्रत्यारोपों और एक-दूसरे पर राजनैतिक आक्षेप लगाने से इतर देखा जाये तो सवाल यह उठता है कि आखिर बहस क्यों न हो। सबसे बड़ी बात यह है कि यह बहस की बात देश की राजधानी के विधान सभा के दौरान उठी है। तो अब सवाल यह आता है कि दिल्ली एक साक्षर राज्य है साथ ही देश की राजधानी होने के नाते दिल्ली में प्रधानमंत्री से लेकर सभी विभागों के दफतर हैं जहां पर निचले स्तर से लेकर कैबिनेट सचिव तक सभी बाबू बैठते हैं। अगर बहस होगी तो हम इस राजनीति को नए सिरे से देख सकेंगे। नेतृत्व की तार्कित और बौद्धिक क्षमता को परख सकेंगे। यह लोकतंत्र के लिए एक नये अध्याय के लिखे जाने का मौका होगा। अगर अब बहस नहीं हो सकती तो कब  होगी और कहां। इतनी उम्मीद व मांग तो जनता की ब

नर्क में बिताए वो लम्हे

... दिल्ली के करनाल बाईपास की भूल-भुलैया में ऐसे उलझे कि वापिस आने के लिए डिवाईडर पर कट ढूंढते-2 अलीपुर जा पहुंचे। वहां से यू टर्न लिया। गंदे नाले के किनारे चलते-चलते वापिस करनाल बाईपास पहुंचे। यहां एक बहुत ही बड़ा कूड़े का पहाड़ दिखाई दिया और उस पर टहलते कुछ लोग। पीछे बैठा अ‍ेंल्ल बोला ‘ अदिति ! ये कूड़ा बीनने वाले लोग हैं जो यहां से खाना ढूंढते हैं!’ ‘नहीं ये मजदूर हैं, जो यहां इस पहाड़ पर कूड़े को साइड में कर रहे हैं। ’ इतना कहकर मैंने कैमरे के जूम में से उन लोगों को देखना शुरू कर दिया। उनमें से एक हाथ में मुझे लिफाफा दिखा तो मैं चौकी कि कहीं अमन की बात सही तो नहीं? मैंने ड्राईवर को कहा कि इस कूड़े के पहाड़ पर ले चलो। ड्राईवर थोड़ा सा हिचकिचाया, पर मैंने उसे दृढ़ता से कहा तो उसने गाड़ी पहाड़ की तरफ मोड़ दी। घुमावदार चढ़ाई से जैसे-जैसे हम पहाड़ पर चढ़ रहे थे, वैसे-वैसे दिल्ली नीचे जा रही थी। ऊपर एक जगह पहुंचकर ड्राईवर ने कहा कि गाड़ी आगे नहीं जाएगी। जाती भी कैसे, हम उस कूड़े के ढ़ेर के पहाड़ की चोटी पर पहुंच चुके थे। वहां कूड़ा ही कूड़ा और उसमें मुंह मारते कौवे, चील, कुत्ते, गाय व भिन-भिनाती मक्खियां ह