हाल के दिनों में भारतीय जनता पार्टी जहां-जहां चुनाव जीती, वहां उसने मोदी के चहेते और संघ-स्वीकृत नेताओं को ही कुर्सी पर बैठाया। महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा में भाजपा के मुकाबले में कोई ईमानदार छवि की भरोसेमंद पार्टी नहीं थी। साथ ही सत्ता विरोधी रुझान भी भाजपा के पक्ष में गया। लेकिन दिल्ली की राजनीति अलग है और दिल्ली विजय मे भारतीय जनता पार्टी की अनाम मुख्यमंत्री वाली चाल कामयाब नहीं हो पाती । यह स्पष्ट है कि अगर केजरीवाल और उनकी पार्टी मुकाबले में न होते तो भाजपा अपने वरिष्ठों को दरकिनार कर किरण बेदी को शामिल कभी नहीं करती। भाजपा आलाकमान इस बात को भली भांति समझता है कि दिल्ली में केजरीवाल और उनकी पार्टी ही उनके लिए एकमात्र चुनौती हैं। दिल्ली की राजनीति के समीकरणों के इन्हीं आंकड़ों को समझते हुए भारतीय जनता पार्टी के थ्ािंक टैंको ने बिना समया निकाले, अपनी 49 दिनों की सरकार में बिजली-पानी सस्ता करने वाली आम आदमी पार्टी के मजबूत प्रतिद्वंद्वी अरविंद केजरीवाल के सामने चुनाव से पहले शून्य राजनीतिक अनुभव वाली देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी को पार्टी में शामिल किया। इसका मतलब साफ